बढ़ती हुई लाइफस्टाइल डिसिजेस ने स्वस्थ के प्रति हम सभी की जागरूकता बढ़ाई है, जिसकी वजह से कई नए टर्म्स सुनने को मिलते है जिन्हे हम कुछ समय पहले तक जानते भी नहीं थे। ‘प्रोबायोटिक्स’ और ‘प्रीबायोटिक्स’ ये दोनों ऐसे ही शब्द हैं, जो सुनने में बहुत समान लगते हैं, पर इनमें थोड़ा सा फर्क है।
ध्यान से देखें तो इनके शुरुवाती शब्द में फर्क है। प्रोबायोटिक्स का शाब्दिक अर्थ है ‘जीवन के लिए’ (for life)। ये वास्तव में हमारी इंटेस्टाइन में उपस्थित अच्छे बेक्टीरिया की कॉलोनियाँ है, जो कि हमारे भोजन में मौजूद न्यूट्रीएंट्स के अवशोषण में, कुछ महत्वपूर्ण विटामिन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार से हमारी गट को स्वस्थ रखते हैं, अगर आपकी गट हेल्थ बढ़िया है, तो समझ लीजिए बहुत सारे कॉमप्लिकेशन से आप हमेशा बचे रहेंगे।
जबकि प्रीबायोटिक्स इन्ही अच्छे बेक्टीरिया का भोजन है। यानि ये गट को स्वस्थ रखने वाले बेक्टीरिया इन प्रीबायोटिक्स पर ही जिंदा रहते हैं और अपनी वृद्धि करते रहते हैं। ये सोर्स मुख्यतः फाइबर होता है जो कि छोटी आंत तक डाइजेस्ट नहीं होता है। बल्कि बड़ी आंत में पहुंचकर इनका फर्मेन्टेशन शुरू हो जाता है। ये फर्मेन्टेशन की प्रक्रिया गट में उपस्थित बेक्टीरिया द्वारा ही होता है। इसीलिए प्रीबायोटिक्स को इन अच्छे बेक्टीरिया का भोजन कहा जाता है।
तो अब आप ये समझ गए होंगे कि प्रीबायोटिक्स आंतों के गुड बेक्टीरिया के सरवाइवल के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं।
प्रीबायोटिक्स के स्रोत: आप किसी भी प्रांत या देश के हो हमारा फूड विज़्डम इतना सम्रिद्ध है कि अगर आप सही तरह से अपना पारंपरिक भोजन लेते है तो काही ना काही ये सारे एलिमेंट्स आपके डाइट में अपने आप या जाते हैं। जैसे- लहसुन, प्याज, फ्रूट्स, साबुत अनाज, मसाले और कच्ची सब्जियां, इत्यादि।
प्रोबायोटिक्स के स्रोत: हालांकि नेचुरली ये हम सभी की आंत में पाए जाते है, पर कभी हमारी कुछ गलत भोजन की आदतों की वजह से जैसे, अधिक एल्कोहल लेने से, कुछ दवाइयाँ विशेष रूप से दर्द नाशक दवाइयाँ एवं एंटीबायोटिक्स लेने के कारण इनकी कॉलोनी नष्ट हो जाती है। यही वजह से जब किसी मजबूरी की वजह से हमें एंटीबायोटिक्स लेनी पड़े तो उसके साथ विटामिन सप्लीमेंट्स भी जरूर लेने चाहिए। कुछ भोजन ऐसे होते हैं जिनमें ये बेक्टीरिया पाए जाते हैं जैसे दही, छांछ, अचार, फर्मेन्टड फूड (डोसा, इडली, ढोकला, खमण, ब्रेड, इत्यादि), राइस कांजी इत्यादि।
घर पर प्रोबायोटिक्स बनाने का एक आसन तरीका है आप एक मिट्टी के बर्तन में कुक्ड राइस को पानी मे भिगोकर रात भर के लिए ढककर रख दीजिए। सुबह खाली पेट आप ये राइस और इसका पानी दोनों खा लीजिए। यहाँ एक बात ध्यान देने वाली है, आजकल बाजार में कई तरह के प्रोबायोटिक्स उपलब्ध है। जब भी इनका उपयोग करें इनके लेबल जरूर पढ़ें क्यूंकि ज्यादातर इनमें अधिक मात्रा में शुगर और प्रिजरवेटिव्स मिले होते हैं।
अच्छी गट हेल्थ आपके मूड को भी प्रभावित करती है, ऐसा इसीलिए क्यूंकि कोलोन और ब्रेन के द्वारा सिक्रीट किये जाने वाले हॉर्मोन्स एक जैसे होते हैं। इन गुड बेक्टीरिया का अच्छा अनुपात बनाकर आप कई बीमारियों को स्वयं से दूर रख सकते हैं जैसे इरिटेबल बाउल सिन्ड्रोम, डाइरिया और crohn’s डिसीज।
अच्छी गट हेल्थ आपको कई ऑटो इम्यून डिजीज से बचा कर रखती है। लीकी गट सिन्ड्रोम से कई तरह की स्किन से रिलेटेड प्रॉब्लेम्स होती है जैसे एक्ज़िमा और सॉरैसिस। थायरॉइड ग्लैन्ड की प्रॉब्लेम, हाशिमाटो डिजीज भी लीकी गट सिन्ड्रोम से संबंधित है।
आप भी अपनी गट के इन दो फ़्रेंड्स को अपनी डाइट में शामिल कीजिए और अपने जीवन का आनंद लीजिए…