‘पंचतत्व’ इस शब्द से तो आप परिचित होंगे। भारतीय संस्कृति में पाँच एलीमेंट्स को विशेष स्थान दिया है और ऐसा माना जाता है की ये जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह ब्रह्मांड इन्ही पाँच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर निर्मित हुआ है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य के शरीर में पाँच सेंसरी ऑर्गन्स हैं कान, नाक, आँखें, स्किन और जिव्हा है। ये हमारे शरीर को बाहरी वातावरण से जोड़ते हैं, इन्ही अंगों द्वारा हम बाहरी संसार के माहौल को सुनते, सूंघते, देखते, स्वाद लेते और महसूस करते हैं। ये प्रथम तौर पर बड़ा विचित्र सा संबंध लगता है, पर सच ये है कि जब भी ये संतुलन डिस्टर्ब होता है तो हमारा मन मस्तिष्क हमें अप्रसन्नता का सिग्नल दे कर अवगत करा देते हैं। इसीलिए हमारे सांस्कृतिक मूल्य और मूलभूत संवेदनशीलता हमें हमेशा इन पांचों तत्वों के बीच तारतम्यता बनाने के लिए प्रेरित करती है। अब आप के मन में इसे ले कर कुछ सवाल उठ रहें होंगे, जो बहुत ही स्वाभाविक है। जैसे जैसे हम इसे समझने में आगे बढ़ेंगे आप के सवालों को अपने आप उत्तर मिलते जाएंगे …
पहला तत्व पृथ्वी, शरीर का प्रतीक है-
पृथ्वी जीवन धारण करने के लिए माँ के समान है, इसमे मिट्टी की द्रढ़ता, अभूतपूर्व चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण क्षमता है। इस पर सजीव, निर्जीव, विविध प्रकार के जीव जन्तु और अनगिनत वनस्पतियों आपसी सामंजस्य के साथ मौजूद है। ठीक इसी तरह हम सभी का शरीर भी है, इसके विभिन्न अंगों द्वारा हम बाहरी दुनिया से कनेक्ट करते हैं, इसीलिए हमारा शरीर जीवन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।
दूसरा तत्व जल, मस्तिष्क का प्रतीक है-
जीवन का प्रारंभ जल से होता है। जैसे पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा जल है वैसे ही हमारे शरीर का भी दो तिहाई भाग जल है। शरीर और सेंसरी कनेक्टिविटी के बाद अगर बात करें तो अनुभूति ही शारीरिक एहसास को सच्चाई से जोड़ने वाला है। शरीर और मस्तिष्क दोनों साथ साथ ही अस्तित्व में आते हैं एक दूसरे के बिना इनकी अलग अलग कोई पहचान नहीं है। यहाँ जल तत्व को मस्तिष्क के समान इसीलिए मानते हैं, क्योंकि यहाँ विचार उपजते हैं जो जल की भांति तरल होते है, आप भी इस बात को मानेंगे कि मस्तिष्क के भावों की कोई सीमा नहीं है, ये अनंत हैं।
तीसरा तत्व अग्नि, ज्ञान का प्रतीक है-
अग्नि ऊर्जा और प्रकाश का जैविक स्रोत है इसके उजाले की वजह से प्रकर्ति के खूबसूरत रंगों की दृश्यता होती है। शरीर और मस्तिष्क के संयोजन से जो भी संवेदी संकेत हमें प्राप्त होते हैं वो विविध रंगों के समान तार्किक विचारों के रूप में परिलक्षित होते हैं। ज्ञान के अभाव में हमारा मस्तिष्क अनियोजियत विचारों को एकत्र और वितरित करने वाला मात्र एक अंग रह जाता है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का अर्थ है ज्ञान हमें अज्ञान के अंधेरे से ज्ञान के पथ की ओर अग्रसर करे। ज्ञान ही हमारे मस्तिष्क और आत्मा की ऊर्जा है और अग्नि के समान ये हमारे विचारों को आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।
चौथा तत्व हवा, जागरूकता का प्रतीक है-
ऑक्सीजन को प्राणवायु भी कह सकते हैं, ये सभी जगह उपस्थित है। यह हमारे आंतरिक और बाहरी वातावरण की सहगामी है। यह जीवन का प्रतीक है, प्राणवायु हममें चेतना और सजगता को जाग्रत कर हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा को जीवन देती है। जैसे अग्नि प्रज्ज्वलन के लिए हवा आवश्यक है वैसे ही ज्ञान को जगाने के लिए जागरूकता आवश्यक है। इसके बिना ज्ञान दिशाहीन हो जाता है और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। तो जीवन की सफलता के लिए मस्तिष्क, ज्ञान और जागरूकता तीनों का समन्वय होना आवश्यक है, अगर ये सामंजस्य सही है तो सफलता हमसे कतई दूर नहीं है।
पाँचवा तत्व आकाश, चेतना का प्रतीक है-
अनंत, असीमित क्षितिज जो कि सुदूर अंतरिक्ष तक व्याप्त है, वही आकाश है। दिन के प्रकाश में यही आकाश हमारे ऊपर नीले चादर की तरह है, तो वह रात में यह घर है अनंत टिमटिमाते तारों का। यह चेतना का प्रतीक है इसकी वजह से ही यह एहसास होता है कि जो हम आस पास देखते हैं, वह सब कुछ इसी आकाश के नीचे मौजूद है। अगर इस आकाश की चादर को हटा दिया जाए तो पता नहीं कितने संदर्भ बिन्दु (reference point) गुम हो जाएंगे। पता ही नहीं चलेगा कि हम कहाँ है? चेतना भी ऐसा ही संदर्भ बिन्दु (reference point) है जो हमें हमारे होने का एहसास कराती है, ये अन्य तत्वों को भली भांति महसूस करने की महत्वपूर्ण कड़ी है।
इन पांचों तत्वों को आप जीवन के किसी भी भाग, विचार से जोड़ के देख सकते हैं। इनका मूलभूत सार एक ही है। हालांकि जीवन के विभिन्न पहलुओं में इनका दखल अलग अलग है… गीता का भी यही सार है।