हम सभी ने डाईबिटीज टाइप 2 ”द मॉडर्न लाइफ स्टाइल डिसीज” के बारे में बहुत कुछ सुना और पढ़ा होगा। हमारे शरीर के भीतर स्थित सभी अंग भली प्रकार तभी कार्य कर पाते हैं जब ब्लड में शुगर की मात्रा एक निश्चित सीमा में हो। ब्लड में शुगर की मात्रा का नियंत्रण पेन्क्रियाज नामक ग्लेन्ड करती है। यह दो हॉर्मोन्स सिक्रीट करती है जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ब्लड शुगर क्या है?
जब भी हम कुछ खाते है, तब पूरे डाइजेशन के पश्चात भोजन ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है। यही वह छोटी इकाई है, जो कि ब्लड के माध्यम से सभी अंगों तक पहुंचती है और अवशोषित भी होती है। यही ग्लूकोज हमारे शरीर के लिए ऊर्जा का स्रोत है। हमारे शरीर के भीतर जितनी ग्लूकोज की मात्रा ब्लड में उपस्थित होती है वही ब्लड ग्लूकोज लेवल कहलाता है। W.H.O. द्वारा निर्धारित ब्लड शुगर रेंज निम्न प्रकार है-
नॉर्मल फास्टिंग (यानि टेस्ट से 8 घंटे पहले तक कुछ भी नहीं खाया हो) – 70 से 110 mg/dL
पोसटप्रेंडियल (pp) खाना खाने के दो घंटे बाद – 140 mg/dL
रेंडम शुगर लेवल (कभी भी टेस्ट करने पर) – 200 mg/dL
पेन्क्रियाज क्या है?
यह ग्लैन्ड हमारे शरीर में दाई तरफ लिवर के नीचे की तरफ होती है। इसका आकार एक पत्ती की तरह होता है। यह दो हॉर्मोन्स सिक्रीट करती है “इंसुलिन और ग्लूकागोन”। इंसुलिन पेन्क्रियाज की बीटा सेल्स द्वारा सिक्रीट होता है वहीं ग्लूकागोन अल्फा सेल्स द्वारा सिक्रीट होता है। यही दोनों हॉर्मोन्स ब्लड ग्लूकोज लेवल को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ब्लड शुगर कैसे रेगुलेट होता है ?
हमारा शरीर बहुत ही बारीकी से ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित रख कर मेटाबोलिक होमिऑस्टेसिस बनाए रखता है।
भोजन के डाइजेशन के बाद ब्लड शुगर लेवल में वृद्धि होती है, उस समय पेन्क्रियाज, इंसुलिन हॉर्मोन को सिक्रीट करके शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोस के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करता है। जिसकी वजह से ग्लूकोस लेवल धीरे-धीरे कम होने लगता है। इंसुलिन हॉर्मोन लिवर को भी प्रेरित करता है कि लिवर एक्स्ट्रा ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित कर स्टोर कर ले। यह संग्रहित ग्लाइकोजन भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर उपयोग में ली जाती है।
जब ग्लूकोज लेवल एक निश्चित लेवल से कम हो जाता है तो ग्लूकागोन हॉर्मोन सिक्रीट होता है जो कि लिवर को प्रेरित करता है कि वह स्टोर्ड ग्लाइकोजन को पुनः ग्लूकोज में परिवर्तित कर शरीर के उपयोग हेतु रिलीज करे।
इंसुलिन इंसेन्सटीविटी क्या है?
जब भी हम अधिक GI (ग्लाईसीमिक इंडेक्स) वाला भोजन करते है तो इसके फलस्वरूप ब्लड शुगर लेवल बहुत तेजी से अप होता है और उसी प्रकार कुछ ही समय बाद तेजी से डिप भी होता है। रिफाइन्ड आटा, बेकरी आइटम, डिब्बा बंद जूस, एयरेटेड ड्रिंक्स कुछ उदाहरण है हाई GI फूड आइटम्स के। इस तरह की प्रक्रिया को मैनेज करने में पेंक्रियाज पर अधिक दवाब पड़ता है और दोनों हॉर्मोन्स का संतुलन भी बिगड़ता है। इसकी वजह से आपके पेट के चारों तरफ फैट का जमाव बढ़ता जाता है। इस तरह की इटिंग हेबिट्स आगे जाकर इंसुलिन और ग्लूकागोन हॉर्मोन्स की, ब्लड ग्लूकोज लेवल को मेनेज करने की संवेदनशीलता (सेंसटिविटी) को समाप्त कर देती हैं। यह परिस्थिति “इंसुलिन इन्सेन्सटिविटी” कहलाती है और यही आगे जाकर टाइप 2 डाइबिटीज की वजह बनती है।
इंसुलिन रेजिसटेन्स को कैसे अवॉइड और ओवरकम करें?
सबसे अच्छी और सकारात्मक बात यह है कि आप इस परिस्थिति को रिवर्स कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपनी डाइट और जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने होंगे। ऐसा भोजन खाने की आदत डालिए जिसमें प्रचुर मात्रा में फ़ाइबर पाया जाता है जैसे होल ग्रेन, चोकर युक्त आटा, मिलेट्स, मोटे अनाज, ओट्स, दालें, नट्स, फ्रूट्स और सभी तरह की सब्जियां। ये सारे फूड टाइप इंसुलिन रेसिस्टेंस की प्रवृति को रिवर्स करने की क्षमता रखते हैं।
इसके अलावा आपको हफ्ते में कम से कम पाँच दिन अलग अलग तरह के व्यायाम जैसे योग, स्ट्रेंगथ ट्रैनिंग, ब्रिस्क वाक, कार्डियो और स्ट्रेचिंग अपनी दिनचर्या में शामिल करने चाहिए। इसके अलावा आपको पूरे दिन एक्टिव रहना है। एक ही जगह पर लंबे समय तक बैठे रहने को अवॉइड करें। अगर काम की विवशता ही है तो भी थोड़ी थोड़ी देर में ब्रेक लें।
अब जब आप इस बारे में समझ गए हैं और अगर आप इस परिस्थिति में है तो स्वयं अपनी मदद करिए और अपने जीवन में बदलाव लाइये, अपने साथ जुड़े हुए लोगों को भी इस तथ्य से अवगत कराएं और उनकी भी मदद करिए। ऐसा सब कर के अपने स्वस्थ जीवन का भरपूर आनंद लीजिए…