भावनाओं और संवेदनाओं की कोई भाषा नहीं होती चाहे आप अपने देश में हों या किसी और देश में। खुशी, दुख, दर्द और स्नेह जैसी भावनाओं को आप एक ही तरह से प्रदर्शित करते हैं। एक बार मैं भी अपने परिवार के साथ दूसरे देश में रहने गई, जहां लोग दूसरी भाषा बोलते थे। शुरुवात में हमें हर छोटी बड़ी बात के लिए बड़ी कम्यूनिकेशन प्रॉब्लम होती थी। घर के छोटे–छोटे काम हो, किसी से सलाह लेना या अपनी बात कह पाना, बड़ी टेढ़ी खीर लगता था। हालत कुछ ऐसी थी कि लोगों से बात करने का मन तो करता था, पर भाषा ना आने की वजह से केवल स्माइल से ही काम चलाती थी। बड़ी याद आती थी ऐसे में अपनों की। सच मानिए यहाँ भारत में रहकर जिन लोगों को कभी अवॉइड कर दिया करती थी, मन करता था वो ही मिल जाएं तो उने पकड़कर बैठा लूँ और खूब बातें करूँ। खैर ये तो मेरा हाल था, मेरा बेटा भी ग्रोइंग ऐज में था, तो लगता था वो यहाँ कैसे समझेगा अपने दोस्तों की बातें जब वह स्कूल स्टार्ट करेगा। यही सब उधेड़ बुन मेरे मन और मष्तिष्क में हर समय चलती रहती थी।
एक दिन मेरी ये सारी कोरी कल्पनाएं छू मंतर हो गई और मुझे लगा मैं फालतू इतना परेशान थी।
ये कैसे हुआ – एक दिन घर के काम निबटा कर मैं अपने बेटे के साथ पास के पार्क में गई। जहां वो अपने कुछ खिलोनों के साथ पार्क की रेत में खेलने लगा। मैं पार्क की एक बेंच पर बैठकर उसे देखने लगी और मन ही मन उसकी तल्लीनता की तारीफ भी कर रही थी। तभी उसकी ही उम्र का एक और बच्चा उसके पास अपनी टॉय कार लेकर आया और बोला “बीप – बीप”!! शुरू में तो मैं नहीं समझ पाई कि ये बच्चा मेरे बेटे से क्या कह रहा है और इंतज़ार करने लगी कि मेरा बेटा क्या करेगा? पर फिर मैंने देखा दोनों बच्चे अपनी अपनी भाषाओं में बात करने लगे जिसमें इशारे ज्यादा थे। पर दोनों ही थोड़ी देर में घुल मिल कर खेलने लगे।
उस समय मुझे एहसास हुआ की जैसे जैसे हम बड़े होते हैं हम अपने आस पास एक बॉउन्ड्री बना लेते है और धीरे धीरे उसे बड़ा भी करते जाते हैं। क्यूंकि हमारा दिमाग कुछ प्री कन्सीव्ड धारणाओं से बायस्ड रहता है। हम कुछ निश्चित रूल बना लेते हैं और खुद को सब के लिए ओपन नहीं करते।
बच्चों को खेलता देखकर लगा अगर हम लोगों से कनेक्ट नहीं कर पा रहें हैं तो समस्या, भाषा नहीं है, बल्कि हमारी बनाई हुई मानसिक दीवारें हैं जिनमें हम खुद को कैद कर लेते हैं। ज़िंदगी को वैसे नहीं लेते जैसे वह हमारी तरफ आती है, बल्कि उसे अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं। उस दिन मैंने अपने चारों तरफ नज़र घूमकर देखा तो पाया सूरज, चाँद , बादल, भोर साँझ, हवा, पानी, डर, गुस्सा, खुशी, हंसी…. ये सब हर जगह एक जैसे ही तो हैं। सो अपने मन की बाउन्ड्रीज को ब्रेक करिए ताकि आप हर जगह खुश रह सकें। हर परिस्थिति को एक अवसर के जैसे देखिए और मोस्ट इंपोर्टेन्ट अपने जीवन का आनंद उठाइए…