डीटॉक्सिफिकेशन यूं तो सुनने में बड़ा भारी सा शब्द लगता है पर सरल भाषा में कहें तो, शरीर से हानिकारक, टाक्सिक पदार्थों को बाहर निकालना ही डीटॉक्सिफिकेशन कहलाता है।
इसकी क्या आवश्यकता है?
टाक्सिक वेस्ट हमारे भीतर दो रास्तों से प्रवेश करते है-
- पेक्ड और प्रोसेस्ड फूड आइटम से। ये आजकल हमारी लाइफस्टाइल का हिस्सा बनते जा रहे है। इस माध्यम से टॉक्सिन डाइजेस्टिव सिस्टम में पहुँच जाते हैं।
- प्रदूषित पर्यावरण में सांस लेने से, चूंकि प्रदूषित हवा में विभिन्न केमिकल्स, हेवी पार्टिकल्स होते हैं वो हमारे श्वास के माध्यम से हमारे लंग्स में प्रवेश कर जाते हैं।
यहाँ जानने योग्य बात ये भी है की, जो भोजन आइटम प्राकर्तिक तरीके से निर्मित नहीं होता है वो सब हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम पर बहुत भारी पड़ते है। यानि इन्हे पचाने में बहुत अधिक समय लगता है। ज्यादातर ऐसा भोजन बड़ी आंत में फंस जाता है और एक लेयर बना लेता है। ये लेयर कई बेक्टेरिया, वाइरस और मोल्डस की फेवरेट जगह बन जाती है। यहाँ ये सारे आराम से अपनी ग्रोथ करते रहते हैं। आंतों की ये कोटिंग पोषक तत्वों के अवशोषण में रुकावट का कार्य करती है जिससे आगे चलकर कॉन्सटीपेशन या कब्ज़ की शिकायत रहने लगती है।
कई बार ये टॉक्सिनस ब्लड द्वारा ट्रांसपोर्ट होकर स्किन के नीचे धीरे धीरे एकत्रित हो जाते हैं। इसी वजह से मुहांसे, स्किन ब्रेकआउट और स्किन से रिलेटेड अन्य बीमारियाँ हो जाती हैं। यदि ये टॉक्सिनस ब्लड द्वारा प्रवाहित हो के लंग्स में पहुच जाते हैं तो अस्थमा की वजह बनते है।
अगर एक बार को हम किसी तरह घर के बने शुद्ध सात्विक भोजन को ही अपनी आदत बना ले, तो भी वातावरण में उपस्थित प्रदूषण को अपने भीतर जाने से तो नहीं रोक सकते हैं। तो इन टॉक्सिनस को शरीर से बाहर निकालने का एक तरीका है “ऑइल पुलिंग”।
ये एक कमाल की आयुर्वैदिक विधि है जो बहुत ही अच्छे से रिजल्ट देती है।
ऑइल पुलिंग का तरीका: इसके लिए सुबह उठकर ब्रश करने से पहले खाली पेट आप अपने मुँह में 1-2 चम्मच ऑइल रखिए फिर उसे 10-15 मिनट तक मुंह में रखे रहिए और बीच बीच में स्विश करते रहिए। आप इसे रोजाना भी कर सकते हैं। इस समय में आप अपने और दैनिक कार्य निबटा सकते हैं।
ऑइल का चुनाव: ऑलिव, सरसों, कोकोनट या फिर तिल, इनमें से किसी भी तेल को आप ऑइल पुलिंग के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। व्यक्तिगत तौर पे कोकोनट ऑइल सबसे अच्छा है क्यूंकि इसकी स्मेल और टेस्ट दोनों ही बहुत न्यूट्रल हैं। अन्य ऑइल की अपनी स्ट्रॉंग स्मेल और टेस्ट है जो आपको डिसट्रेक्ट कर सकता है। गुणों के आधार पर सभी ऑइल बेहतरीन है।
ऑइल पुलिंग का विज्ञान: हमारी जीभ शरीर के कई आंतरिक अंगों से नसों द्वारा कनेक्टेड रहती है। अपने देखा होगा जब भी आप बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाते है तो वह आपकी जीभ को एक्जामिन करते हैं। जीभ देखकर उनको आपकी इंटर्नल हेल्थ का अंदाजा लग जाता है।
टाक्सिक माइक्रोऑर्गेनिज़्म्स की ऊपरी लेयर लिपिड कोटेड होती है। ऑइल पुलिंग के समय ये टॉक्सिनस वेंस के द्वारा ऑइल मे घुलकर जीभ तक खिच जाते हैं, जब 15-20 मिनट बाद कुल्ला करते हैं तो काफी हद तक इन टॉक्सिनस को हम बाहर निकाल देते हैं।
परिणाम: आप जब ये नियमित रूप से करेंगे तो निश्चित तौर पर आप इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। पहला तो आपकी ओरल हेल्थ बहुत इंप्रूव होगी इसके अलावा स्किन में चमक, माइग्रेन और सरदर्द में भी आराम होगा।आपको अपने डाइजेशन मे सुधार दिखेगा, कब्ज़ में भी राहत महसूस होगी।
सावधानियाँ: अपने मुँह में उपस्थित ऑइल को अंदर कभी भी ना निगले, ऐसा करने से आप सारे टॉक्सिनस को वापस अपने सिस्टम में भेज देंगे। दूसरा इसे ब्रश करने से पहले ही करें।
सो इस बहुत ही पुरानी आयुर्वेदिक ऑइल पुलिंग की पध्यति को अपनाएं, और टॉक्सिन फ्री जीवन का आनंद उठायें…