मीशा
हाँ जी! मैं बच्चों की प्रिय रशियन मैगजीन की ही बात कर रही हूँ, जो कि 70s -80s और शुरुवाती 90s के समय में एम.आई.आर. सोवियत यूनियन पब्लिकेशन हाउस द्वारा प्रकाशित होती थी। शायद आपमें से कुछ को अभी भी याद होगा और आप अपनी उस मैगज़ीन से रिलेटिड मेमोरीज को याद कर पाएंगे।
एक दिन ऐसे ही मैंने देखा कि मेरे बच्चे को एक कार्टून केरेक्टर “माशा एण्ड द बेयर” देखेने में बहुत रुचि रखते है। यह एक एनिमेटिड सीरीज है जो कि एक रशियन फोक कहानियों पर आधारित है। इसमें एक छोटी पर बड़ी शरारती लड़की माशा और एक क्यूट और सेंसिबल बेयर की स्टोरीज है, इन दोनों के अलावा भी कुछ केरेक्टर हैं। जब आप बच्चों के साथ उनका कुछ देखते हो तो आप भी अपने बचपन में वापिस चले जाते हो। हर छोटी हरकत शरारतें आपको मस्ती उन्मुक्तता के माहौल में खुला छोड़ देती है। आपको भी बच्चों जैसे ही हर छोटी बात पर हंसी आने लगती है। लगता ही नहीं कि समय की उंगली पकड़कर आप आगे बढ़ चुके हैं। हर व्यक्ति की जीवन की सारी अवस्थाएं लगभग एक जैसी होती है फीलिंगस तो निश्चित रूप से समान ही हैं। अगर समय के साथ बदलाव आता है तो सिर्फ माध्यम और तकनीक में। जो खुशी गुदगुदी हम लोगों को मेगज़ीन पढ़कर होती थी अब मेरे बच्चों को वही आनंद कार्टून देख कर आता है।
माशा एण्ड द बेयर देखकर मैं भी अपने बचपन की यादों में खो सी गई। याद है आपको हम सभी कितनी कॉमिक बुक्स पढ़ा करते थे। मेरे पापा अपने स्कूल की लाइब्रेरी से कई सारी बुक्स अपने बैग में लाते थे। हम बच्चे बड़ी उत्सुकता से इंतज़ार करते थे की इस बार किस बुक का नया एडीशन आया है। कुछ किताबें मैंने बड़े दिनों बाद पढ़ी पर मीशा मेरी फेवरेट हुआ करती थी।मीशा के हर संस्करण में फोक टेल्स, शॉर्ट स्टोरीज, पोएम्स, साइंस फिक्शन, पज़ल और क्रिएटिव सेक्शन, पेनपाल इत्यादि होते थे। इसका हर सेक्शन मुझे बहुत पसंद था। स्पेशली इसके आर्ट एण्ड क्राफ्ट से देख कर मैंने कई चीजें बनाई, इसे देखकर मैंने भी ग्रीटिंग कार्ड्स, एक सुन्दर सी डॉल और ऑरिगेमी के नमूने बनाए हालांकि कुछ अच्छे बने कुछ नहीं भी। पर इसकी क्रेज़ बराबर बनी रही। इस मेगज़ीन के शाइनिंग और चिकने पेजों पर लिखी कहानियाँ ऐसी विसुअल ट्रीट लगते थे जैसे आजकल के बच्चों को स्क्रीन पर नई एप लगती है।
मेरे पापा ने अपने हाथ से एक लकड़ी की छोटी रेक बनाई थी जिसमें हम बच्चे अपनी सारी बुक्स रखते थे। अब सोचती हूँ तो लगता है मेरे लिए उस रैक की कीमत किसी लाइब्रेरी से कम नहीं जिसने मुझमें रीडिंग का शौक जगाया। पता नहीं मैं अपने बच्चों को ऐसी कोई याद दे पाउँगी या नहीं। पर मुझमें जो भी नॉलेज है उसे तो जरूर ही ट्रांसफर करूँगी।
अपने बच्चों या नेक्स्ट जेनरेशन का तो क्या ही कहूँ पर हम लोगों ने ही अपने जीवन के इस समय में ऐसी पुस्तकों का मूल्य भुला दिया है। नई टेक्नोलॉजी ने इन किताबों को कमरे के एक कोने की ही जगह दे दी है। ये किताबें भी इंतज़ार करती है की कब रद्दी वाला आए और ये हटें। पर फिर भी जीवन के किसी समय में हम इनकी याद तो करते ही हैं। जैसे कि ये लिखते समय मुझे बड़ी याद आ रही है कि काश एक कॉपी तो राखी होती। ऐसे ही ख्याल आया की क्या हुआ अब मीशा का? गूगल किया तो एक साइट मिली जो कि इसके कुछ एडीशन का पी. डी. एफ. प्रोवाइड करती है।
आपमें से किसी को अगर पढ़ना हो तो लिंक है-
https://saintelmosfire.wordpress.com/tag/russian-childrens-magazine/
यादें सँजोते रहिए अपनी यादों को क्यूंकि यही रहती है हमारे दिलों दिमाग में और यही हम अपनी अगली पीढ़ी को देते रहते हैं। इन्जॉय रीडिंग .. वाकई अच्छी आदत है।