हम सभी पेयजल की आवश्यकता से भली भांति सहमत हैं। पानी हमारे शरीर के भीतर कई मेटाबोलिक क्रियाओं के लिए अत्यंत आवश्यक है। पानी एक क्लीनिंग एजेंट है और हमें प्राक्रतिक रूप से डीटाक्सफाई करता है यानि आंतरिक अंगों की सफाई में सहायक है। पानी को लेकर कुछ सवाल हमें भ्रमित करते है। जैसे एक व्यक्ति को प्रतिदिन कितना पानी पीना चाहिये? पानी पीने का सही समय और तरीका क्या है ? पानी ठंडा पियें या गरम इत्यादि.. ताकि इस नेचुरल डेटोक्सिफाइर का अधिकतम लाभ उठाया जा सके।
पानी से संबंधित कुछ फेक्ट्स निम्नलिखित है जिनमें इन सारे सवालों के समाधान है-
पानी पीने का सही तरीका : कभी भी जल्दबाजी में पानी ना पियें। हमारी मुह की सेलाईवा (लार) एल्केलाइन होती है जबकि आमाशय का माहौल एसीडिक होता है । जल्दी पानी पीने से सेलाईवा पानी के साथ मिक्स नहीं हो पता और आमाशय एसीडिक ही बना रहता है जिसकी वजह से एसिडिटी पेट फूलना , पेट में भारीपन महसूस होना बना रहता है। शरीर का एसीडिक माहौल कई बड़ी बीमारियों की वजह बनता है।
तो अभी से ही पानी को धीरे धीरे घूँट-घूँट करके पीना शुरू करिए और फ़र्क देखिए। इसकी आदत बनाने के लिए आप सिपर से पानी पी कर स्टार्ट कर सकते हैं।
खड़े होकर पानी मत पियें : आपने अपने बड़ों को कहते सुन होगा कि खड़े होकर पानी मत पियो, चलते या दौड़ते हुए तो कभी नहीं। ऐसा इसीलिए क्यूंकि हमारी किडनी उस समय पानी को अच्छे से फ़िल्टर नहीं कर पाती है । दूसरा तथ्य इसके पीछे यह है कि हमारी मसल्स और नर्वस सिस्टम गति करते समय रिलेक्स नहीं होते हैं, जिससे लिक्विड का डाइजेशन प्रोपर नहीं होता फलस्वरूप हमारे जोड़ों में फ्लूइड जमा होकर आगे जाकर आर्थराइटिस की समस्या को जन्म देता है। इसीलिए अपने जॉइंट्स का खयाल रखने के लिए हमेशा बैठ कर ही धीरे धीरे पानी पियें।
पानी पीने का सही समय : सुबह उठकर सबसे पहले पानी पीने को आयुर्वेद में उषापान कहते हैं। यह सर्वोत्तम समय है पानी पीने का इस समय पानी जरूर पियें । रात भर में हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की डेटोक्सिफ़ाइंग क्रियाएं होती हैं उषापान द्वारा ये सारे हानिकारक पदार्थ शरीस से बाहर निकाल जाते हैं। सुबह का सेलाइवा डाइजेशन के लिए बहुत बेहतरीन है इसे ब्रश करके वेस्ट ना करें , सबसे पहले पानी पियें फिर अपनी दिनचर्या शुरू करें।
कितना पानी पीना चाहिये : इसका कोई फिक्स नियम नहीं है, जब आपको प्यास लगे पानी पियें, जितना पी सकते है उतना पियें। पानी पीने के बाद भारीपन महसूस नहीं होना चाहिये। पानी की जरूरत बहुत हद तक निर्भर करती है कि हमने क्या खाया है कितनी मेहनत वाली दिनचर्या है, इत्यादि। तीखे या मसालेदार भोजन से अधिक प्यास लगती है ऐसे सामान्य रूप से 2-3 लीटर पानी पर्याप्त है।
हम सही मात्र में पानी पी रहे है या नहीं इसकी जांच का एक तरीका है कि सुबह की युरिन (जो कि डार्क कलर की होना स्वाभाविक है ) को छोड़कर पूरे दिन क्लियर होनी चाहिये।
आवश्यकता से अधिक पानी पीने से जरूरी इलेक्ट्रोलाईट्स भी शरीर से बाहर निकाल जाते है।
कब पानी नहीं पियें : खाना खाने के बीच और बाद में पानी बिल्कुल नहीं पीना चाहिये। जब हम भोजन करते हैं, तो पेट में जठराग्नि प्रदीप्त होती है जो कि डाइजेशन के लिए जरूरी है। पानी पीने से भोजन के पाचन में सहायक एसिड भी डाइलूट हो जाता है। जिसकी वजह से भोजन पचने के बजाय सड़ने लगता है और एसिडिटी, ब्लोटिंग, भारीपन, पेट फूलना जैसी शिकायतें होती है। अगर आपको खाना खाने के बाद पानी पीने की आदत ही है तो इसे बदलने के लिए एक तरीका अपनाएं खाने के बाद अपने मुंह में पानी भरें और कुल्ला करें इससे मुंह भी साफ हो जाएगा और आपको इसके अभ्यास के बाद प्यास भी नहीं लगेगी ।
सही तापमान : रूम टेम्परेचर का पानी पीने के लिए सही तापमान माना गया है। हल्का गुनगुना पानी सर्वोत्तम है। गर्मी के मौसम में मिट्टी के घड़े का पानी भी अच्छा है क्यूंकि मिट्टी का घड़ा पानी के pH को बेलेन्स रखता है। अधिक ठंडा पानी भोजन के फैट को जमा देता है, रक्त वाहिकाओं को सिकोड़ देता है और जॉइन्ट पेन का कारण बनता है।
पीने के पानी के अलावा फलों, सब्जियों, छांछ, दही, दूध, इत्यादि में भी पानी होता है तो इन्हे भी अपने भोजन में शामिल करें और इनकी तरलत का लाभ ले।
पानी को सही ढंग से पीने पर ये औषधि की तरह है तो इन टिप्स को अपनाएं और जीवन का भरपूर आनंद लें…